
चुग़लियाँ
Title पढ़ते ही चेहरे पर शिकन आ गई ना?
ओह! कौन करता है चुग़लियाँ? आजकल किसके पास time है? वैसे इसे कई नाम दे सकते हैं — gossip, पंचायती, गपशप , सुख-दुख बाँटना या broadcast भी!
मैं तो अपने comfort के हिसाब से नाम रख लेती हूँ। हाँ, रस भरपूर मिलता है, नाम चाहे कुछ भी हो।
एक बार हम कहीं गाँव से निकल रहे थे। मैंने देखा, दो औरतें सिर पर भारी-भरकम अनाज की बोरी लिए, काफ़ी देर से खड़ी-खड़ी बातें कर रही थीं। सिर का बोझ उन्हें परेशान नहीं कर रहा था क्योंकि उनके दिल का बोझ हल्का हो रहा था। कहते हैं ना, दिल खोल लो यारों के साथ, नहीं तो फिर डॉक्टर खोलेंगे औज़ारों के साथ!
औज़ारों के दर्द से अच्छा है कि दोस्तों से चुग़लियाँ या पंचायती करो और दिल हल्का रखो।
कोशिश करके देखिए — पति की, सास की, ननद की, बच्चों की, बहू की और फिर पड़ोसियों की, किसी को भी पकड़ लो यार। और यदि सामने सुनने वाली अपने बच्चों की मौसी हो तो “सोने पर सुहागा”! बात इधर-उधर जाने का risk भी नहीं।
चुग़लियाँ fixed deposit में रहती है, ब्याज अलग मिलता है!
क्योंकि जितनी देर बात मन में रखो, उतना ही उसमें मसाला लग जाता है।
बात करते ही दिल और दिमाग हवा में उड़ने लगते हैं या हवा की तरह हल्के हो जाते हैं।
मज़े की बात तो ये है कि साथ-साथ physical exercise भी हो जाती है — जैसे मोबाइल को एक कान से दूसरे कान पर बार-बार लगाना, पाँव ऊपर-नीचे करके position बदलना। बातें करते-करते थक जो जाते हैं ना भई!
सबसे अच्छी तो face exercise — सारे रस, जैसे हास्य, क्रोध, घृणा और मेरा सबसे पसंदीदा, सबकी नकलें करते हुए आँख-मुँह चलाना!
देखो, हैं ना कितने फायदे चुग़लियों के — दिल, दिमाग और शरीर, सबका इलाज एक साथ हो जाता है।
आप भी करके देखिए, मज़ा ना आए तो कहना। मैं भी तो इतनी देर से घुमा-फिरा कर आपके साथ अपना दिल हल्का कर ही रही हूँ ना!
मेरी मानो, जब कभी उदास हों या भारीपन महसूस हो, तो शुरू हो जाइए अपने दोस्तों या बच्चों की प्यारी मौसी के साथ चुग़लियाँ करने। मन हल्का ना हो जाए तो कहना!
थोड़ी चुग़लियाँ करके मन हल्का करती,
लता मक्कड़
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